पीकेसी परियोजना में वर्तमान पार्वती एक्वाडक्ट की भी मरमत कराई जाएगी, लेकिन भविष्य के लिहाज से नया एक्वाडक्ट यानि पानी पुल (जल सेतु) भी इसी के बगल से निर्मित होगा। चंबल नहर के नवीनीकरण और आधुनिकीकरण के काम में इसका प्रस्ताव भी शामिल किया गया है। पुराना सेतु टूटे या क्षतिग्रस्त हो जाए तो सिंचाई के लिए पानी बंद नहीं होगा, बल्कि नए एक्वाडक्ट से सप्लाई चालू रहेगी।
अधिकारियों के अनुसार नए एक्वाडक्ट के लिए जल्द ही सर्वे शुरू होगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1955 से 1960 की अवधि में महज 90 लाख में बने पार्वती एक्वाडक्ट के नीचे पार्वती नदी बह रही है, तो बीच में नहर और ऊपर से सड़क निकल रही है।
श्योपुर के जलसंसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री रामनरेश शर्मा बताते हैं कि पीकेसी परियोजना में पूरी चंबल मुख्य नहर का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण होना है। इसमें पार्वती नदी पर नया एक्वाडक्ट यानि जल सेतु भी बनाया जाना प्रस्तावित है। ये एक्वाडक्ट वर्तमान के एक्वाडक्ट के पास ही बनेगा।
डिस्ट्रीब्यूटरी और माइनर शाखाएं होंगी पक्की
पीकेसी परियोजना में चंबल मुख्य नहर के नवीनीकरण एवं आधुनिकीकरण का कार्य होगा। इसमें श्योपुर, मुरैना एवं भिण्ड जिले तक चंबल दाहिनी मुख्य नहर पर 1870.60 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसके तहत जहां अभी नहर कच्ची है, वहां इन्हें पक्का बनाया जाएगा, वहीं डिस्ट्रीब्यूटरी और माइनर शाखाओं को भी पक्का किया जाएगा, ताकि पानी की बर्बादी रोकी जा सके। इसके साथ ही मुख्य नहर और डिस्ट्रीब्यूरियों पर स्काडा सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे पानी के व्यय का पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन रहेगा।
संभाग में तीन हजार किमी का नहरी सिस्टम
वर्ष 1953-54 में मप्र और राजस्थान के बीच चंबल सिंचाई परियोजना तय होने के बाद चंबल नदी पर बनाए गए कोटा बैराज से मप्र के लिए निकाली चंबल दाहिनी मुख्य नहर राजस्थान के 124 किमी के क्षेत्र में बहती हुई पार्वती नदी पर बने पार्वती एक्वाडक्ट के रास्ते मप्र में प्रवेश करती है। इसके बाद मुख्य चंबल नहर 560 किमी की लंबाई में श्योपुर, मुरैना और भिंड जिले में बहती है। तीनों जिलों में 3 हजार किमी का पूरा नहरी सिस्टम है। इससे संभाग के 1205 ग्रामों की 3 लाख 62 हजार हेक्टयर में सिंचाई होती है। जिले में 278 गांवों 72 हजार 844 हेक्टेयर रकबा सिंचित होता है।